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फिर झगड़े क्यों

फिर झगड़े क्यों                      -विद्या सागर जात-पात में भेद कहाँ अब, केवल झूठी शान। बाबू साहब ने खोली है जूते की दूकान। लौन्ड्री में लोगों के कपड़े पंडितजी हैं धोते। छान रहे हैं गरम जलेबी लालाजी के पोते। शर्मा जी का ‘डेरी फारम’ रखते भैंस पचास। दूध मिलाते हैं पानी में और बने हैं व्यास। बन कलाल यादवजी बैंठें, रोज कलाली खोलें। रविदास जी काँवर लेकर ‘हर-हर, बम-बम’ बोले। पासवानजी ने टाउन में खोली है सैलून। बिसकमरा के बेटे बेचें हल्दी-धनियां-नून। वर्ण-व्यवस्था टूट चुकी है, सब हैं एक ही घाट। जिसके पाले जितना पैसा, उसकी उतनी ठाठ। फिर झगड़े क्यों जात-पात के ............. कुछ सोचो, कुछ जानो। कौन लड़ाता है आपस में........ बूझो और पहचान