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सौ-डेढ़ सौ में बिक गेलो, सरमो न आ रहल हे..

  सौ-डेढ़ सौ में बिक गेलो, सरमो न आ रहल हे..  विद्या सागर पटना (एसएनबी)। सौ-डेढ़ सौ में बिक गेलो, सरमो न आ रहल हे। चेला से पइसा ले-ले के गुरू अब कमा रहल हे। गुरू-शिष्य के मिटल परम्परा, कलजुग में उधिआयल। जुग निरमाता के कंधा पर रूपिया हे चढ़ आयल। मगही के हस्ताक्षर कवि हरीन्द्र विद्यार्थी ने इस कविता के माध्यम से मौलाना आजाद की जयंती पर आयोजित शिक्षा दिवस समारोह में गुरूिशष्य सबंधं व वर्तमान शिक्षा व्यवस्था पर प्रहार किया। प्रेमचंद रंगशाला में मगही, भोजपुरी व मैथिली कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। कवि दयाशंकर बेधड़क ने पुरनके चावल पंथ पर हे कविता प्रस्तुत किया। बेधड़क जी ने संसद से लेकर संतों तक की करतूत को उजागर किया। कवि परमेश्री जी ने आव हमरा अंगना में, बात बहुत बतियावे के शीर्षक कविता प्रस्तुत किया। मगही अकादमी के अध्यक्ष व मगही के प्रख्यात कवि उदय शंकर शर्मा ने छोट ही में लगलई पिरितिआ, पिरितिया जबान हो गेलक्ष् शीर्षक कविता कर जमकर तालियां बटोरीं। कवि दीनबंधु ने इ परेम पढुईया पढ़ावे कविता प्रस्तुत किया। मगही के कवि राकेश प्रियदर्शी, उमेश बहादुर होरी, चंद्र प्रकाश माया, बालेश्वर