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अभिव्यक्ति : इधर धुआंधार नकल, उधर खुलेआम रिश्वत!

अभिव्यक्ति : इधर धुआंधार नकल, उधर खुलेआम रिश्वत! : इधर धुआंधार नकल, उधर खुलेआम रिश्वत! परीक्षा केंद्र की इस तस्वीर के कारण पूरे देश में सूबे की बदनामी हुई। बिहार बोर्ड के लिए रहा ...

इधर धुआंधार नकल, उधर खुलेआम रिश्वत!

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इधर धुआंधार नकल, उधर खुलेआम रिश्वत! परीक्षा केंद्र की इस तस्वीर के कारण पूरे देश में सूबे की बदनामी हुई। बिहार बोर्ड के लिए रहा काला साल मैट्रिक परीक्षा में कदाचार ने सूबे को देशभर में किया बदनाम बदल जाते रहे पिता, नंबरों में भी गड़बड़ी समय पर दिया रिजल्ट, पर बार-बार बदलती रही टॉपरों की सूची वर्ष 2016 इंटर का मॉडल पेपर जारी नहीं कर सका बोर्ड विद्या सागर पटना। साल 2015 की शुरुआत बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (बिहार बोर्ड) ने धमाकेदार अंदाज में की। समिति ने मैट्रिक व इंटर के छात्रों के लिए मॉडल पेपर जारी किया। छात्रों को परीक्षा देने में सहूलियत हुई। फरवरी में इंटर की परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से हुई लेकिन मार्च महीने ने बिहार बोर्ड पर ऐसी कालिख पोती कि देश ही नहीं, विदेशों तक में भी बिहार की शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लग गया। मैट्रिक की परीक्षा में वैशाली जिले के परीक्षा केन्द्र पर हुए कदाचार ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था के वजूद पर ही सवालिया निशान जड़ दिया। बिहार विधानसभा व विधान परिषद में भी सरकार को विपक्ष का निशाना बनना पड़ा। मैट्रिक व इंटर परीक्

मार्क्‍सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज किया

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मार्क्‍सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज किया पटना पुस्तक मेले के पहले दिन ‘‘कहवाघर’ कार्यक्रम में गरजे आचार्य नंदकिशोर नवल   विद्या सागर पटना। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय के संपादन में निकले तारसप्तक के पहले संस्करण में भारत भूषण अग्रवाल ने अपने लिखे-पढ़े की बाबत जो पहला नीति वक्तव्य जारी किया, उसका लब्बोलुआब था- ‘‘मार्क्‍सवाद को जीवन के लिए रामबाण मानता हूं। कम्युनिस्ट हूं। तारसप्तक के दूसरे संस्करण में वह बयान बदल गया। नया बयान था-अब कम्युनिस्ट नहीं हूं। यही नहीं, अब तो लगता है कि जब कहता था, तब भी कम्युनिस्ट नहीं था। कुछ इसी तरह का हतप्रभ कर देने वाला बयान जाने माने समीक्षक नंदकिशोर नवल ने शनिवार को पटना के गांधी मैदान में दिया। मौका था- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के ‘‘कहवाघर’ कार्यक्रम का। उनके रूबरू थे रंगकर्मी जावेद अख्तर। बातचीत के दौरान उन्होंने मार्क्‍सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा- मार्क्‍सवाद एक दर्शन है। गलती यह हुई कि दर्शन को विज्ञान के रूप में देख लिया गया। नतीजतन, धीरे-धीरे वामपंथ विखरने लगा। जिस मार्क्‍सवाद क