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लड़ रहे हैं इसलिए के प्यार जग में जी सके… आदमी का खून कोई आदमी न पी सके

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मॉब लिंचिंग कोई नई घटना नहीं है। हमेशा से यह कातिल होती है वह नहीं देखती है कि उसका धर्म क्या है उसका मजहब क्या है उस की जाति क्या है। वह खून की प्यासी होती है चाहे वह कौन इंसान का हो या जानवर का महाराष्ट्र में दो संतो की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी वह भी पुलिस के सामने। इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है कि भीड़ पुलिस के कब्जे से किसी व्यक्ति को छुड़ाकर लाठी-डंडे से पीटकर पुलिस के सामने ही उसकी हत्या कर दे।   इससे बड़ा दुस्साहस और कुछ हो नहीं सकता। सरकार ऐसी घटनाओं को कैसे रोकेगी यह तो मैं नहीं जानता लेकिन इतना जरुर जानता हूं यह जो हिंसा की आग समाज के अंदर फैलाई जा रही है उसी का यह दुष्परिणाम है कहीं पहलू खान की पीटकर हत्या की जाती है कहीं साधु संतों की। सरकार और मनोवैज्ञानिकों को इस दिशा में शोध करनी चाहिए। आखिर ऐसा क्या हो रहा है कि लोग कानून पर विश्वास के बजाय कानून को अपने हाथ में लेकर किसी की हत्या तक कर दे रहे। आखिर उनके दिमाग में ऐसा क्या चल रहा है कि किसी व्यक्ति के खून के प्यासे हो जा रहे हैं। सरकार को और खास करके पुलिस प्रशासन के अधिकारियों को इस पर सोचने और शोध करने की