मार्क्सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज किया
मार्क्सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज किया पटना पुस्तक मेले के पहले दिन ‘‘कहवाघर’ कार्यक्रम में गरजे आचार्य नंदकिशोर नवल विद्या सागर पटना। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय के संपादन में निकले तारसप्तक के पहले संस्करण में भारत भूषण अग्रवाल ने अपने लिखे-पढ़े की बाबत जो पहला नीति वक्तव्य जारी किया, उसका लब्बोलुआब था- ‘‘मार्क्सवाद को जीवन के लिए रामबाण मानता हूं। कम्युनिस्ट हूं। तारसप्तक के दूसरे संस्करण में वह बयान बदल गया। नया बयान था-अब कम्युनिस्ट नहीं हूं। यही नहीं, अब तो लगता है कि जब कहता था, तब भी कम्युनिस्ट नहीं था। कुछ इसी तरह का हतप्रभ कर देने वाला बयान जाने माने समीक्षक नंदकिशोर नवल ने शनिवार को पटना के गांधी मैदान में दिया। मौका था- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के ‘‘कहवाघर’ कार्यक्रम का। उनके रूबरू थे रंगकर्मी जावेद अख्तर। बातचीत के दौरान उन्होंने मार्क्सवाद की प्रासंगिकता को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा- मार्क्सवाद एक दर्शन है। गलती यह हुई कि दर्शन को विज्ञान के रूप में देख लिया गया। नतीजतन, धीरे-धीरे वामपंथ विखरने लगा। जिस मार्क्सव...